गाज़ीपुर न्यूज़ चर्चा

अरे यह क्या राष्ट्रीय प्रवक्ता रजनीश राय ने जेएनयू मामले पर कह दिया…

नई दिल्ली:वर्तमान में देश के कुछ बड़े विवादित मुद्दों में से एक मुद्दा जेएनयू  भी बना हुआ है जिसके समर्थन और विरोध में लगातार प्रतिक्रिया आ रही है जिसमे जेएनयू विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जिसका सम्बन्ध नही है को छोड़कर लगभग आम जनमानस यहाँ की सभी तरह की गतिविधियों के विरोध में है।
आखिर क्यों ?जेएनयू के विद्यार्थियों द्वारा विरोध का आधार सम्भवतः फीस बढ़ोत्तरी और अनुशासन नियमावली में किया गया फेरबदल है।फीस बढ़ोत्तरी में विरोध का आधार है……. तो समझ मे आ रहा है क्योंकि वास्तविक तौर पर जेएनयू ही नही अन्य सभी विद्यालय या विश्वविद्यालयों में भी ये सुविधाएं लागू होनी चाहिए और कम से कम किसी भी स्तर के शिक्षा की निःशुल्क जिम्मेदारी तो सरकार की बनती ही है। जिसका विरोध किसी हद तक जायज हो सकता है, परंतु बीती सरकारों की शिक्षा नीति के अस्पष्ट नजरिये, सुविधानुसार इस्तेमाल, वर्ग विशेष को, विचारधारा विशेष को समर्थन ,इतिहास का मनोनुकूल उपयोग और शायद गहराई में जाने में दूरगामी नुकसान के उद्देश्य से इसमें आवश्यक बदलाव के प्रति अनदेखी भी एक कारण हो सकती है लेकिन अनुशासन में बदलाव के विरोध का इस तरह प्रतिकार समझ से परे है।बीते कुछ समय से खास तौर पर जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई हुई है।जेएनयू में विधि आ रही है जिसमे “”भारत तेरे टुकड़े होंगे इंसा अल्ला इंसा अल्ला””का नारा, अफजल गुरु की बरसी, दुर्गा प्रतिमा का अपमान, सार्वजनिक रूप से योग की जगह सेक्स को प्राथमिकता का दुष्प्रचार, स्वामी विवेकानन्द की मूर्ति का अपमान, आतंक परस्त पाकिस्तान पर किसी भी तरह की कार्यवाई का प्रतीकात्मक विरोध और ऐसी ही अनन्य गतिविधि बाहर आ रही है और जिस रूप में आ रही है वो किसी भी शैक्षणिक संस्थान की गरिमा और मर्यादा के सर्वथा प्रतिकूल तो है ही देश की एकता अखंडता और सांस्कृतिक विरासत को जिस तरह से आधुनिकता के नाम पर दूषित कर रही है वो वास्तव में “”भविष्य के भारत”” के लिए बेहद चिंतनीय है भी है।आज जेएनयू  आम जनमानस के विरोध के केंद्र में आ गया है और कुछ समय से उसको बन्द करने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है,ऐसा होना सम्भव होगा कि नही ये अलग बात है लेकिन कितने दूरगामी उद्देश्य और अथक परिश्रम से बनाया हुआ एक विश्वविद्यालय कुछ विशेष विचारधारा से पोषित दूषित लोगों की गलतियों की भेंट चढ़कर कहीं अपने अस्तित्व को न तरस न तरस जाए इस बात का भी ध्यान रखना होगा,जिसमे अध्ययन का सपना देश का हर युवा देखता है। jnu ने अतीत में कुछ अपवाद स्वरूप ही सही समाज को अनमोल रत्न भी दिए हैं जो देश समाज की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित करने के साथ- साथ भविष्य के भारत के लिए अपना सब कुछ झोंक देने को तैयार हैं। बीते कुछ दिनों पहले विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की ग़ैरशैक्षिक गतिविधियों की जानकारी और नियंत्रण के लिए बनाई गई एक टीम द्वारा ये तथ्य उपलब्ध करवाना की यहां सेक्स रैकेट भी चलता है और भरपूर मात्रा में नशीले पदार्थों की सप्लाई और उपयोग होता है के रोकथाम के लिए अगर अनुशासन हेतु कोई नियम कानून या बाध्यता बनाई जाती है तो उसका विरोध क्यों ? खास तौर पर उन लोगों द्वारा जो इसमें शामिल नही हैं ।सेक्स रैकेट के सम्बंध में बात आती है तो ये सबसे बड़े विवाद का कारण बनती है,थोड़ी देर के लिए मान लिया जाता है की विरोध या अपनी सुविधानुसार नियम लागू करने के लिए ये सब अफवाह फैलाई जा रही है लेकिन रैंगिंग और आधुनिकता के नाम पर सर्वजिनिक रूप से आये दिन जिस तरह की गतिविधियां सामने आती हैं वो कहीं से भी कमिटी द्वारा दी गयी रिपोर्ट या सूचना का बचाव करती हुई प्रतीत नही होती है और जहां तक मुझे लगता है की *अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और फीस* बढ़ोत्तरी को आधार बना कर मूलतः गैरशैक्षिक गतिविधियों में किये गए बदलाव का विरोध करना ही मुख्य मकसद है। क्योंकि देश का कोई विश्वविद्यालय हो, वर्ग हो, समाज हो, क्षेत्र हो या कोई और संगठन जो वास्तविक तौर पर भारत के समर्थन में उपरोक्त मुद्दों के साथ हैं उनमें से किसी का सहयोग या समर्थन हासिल नही हो रहा है कुछ व्यक्तिगत हताशा या महत्वाकांक्षा से पीड़ित लोगों को छोड़कर…… वैसे तो विश्वविद्यालय में अध्ययन का बड़ा अवसर प्राप्त नही हो पाया लेकिन अपने दौर में एक चीज का प्रायोगिक अनुभव है कि किसी भी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत बच्चा वहां के हॉस्टल में रह कर जिस उद्देश्य से घर से गया हो वो पा ले ऐसा आम तौर पर कम ही देखने को मिलता है….हाँ एक बड़ा समाज जरूर बना लेता है जो कभी कभी बेहद उपयोगी साबित होता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में मूल उद्देश्य प्रभावित हो जाता है और बाहर रहने वाला बच्चा जिसको विद्यालय के सिर्फ शैक्षिक प्रबंधन की कमियों और खूबियों से मतलब होता है वो सामान्यतया सफल हो जाता है इसलिए सरकार को चाहिए कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक व्यवस्था पर की गयी फीस वृद्धि पर पुनर्विचार करे और (हॉस्टल )आवसीय व्यवस्था हेतु बेहद सख़्त और अनुशासित प्रबंध करे जिससे किसी भी तरह की अवैध गतिविधियों में नियंत्रण सम्भव हो सके क्योंकि वो चाहे , जेएनयू या कोई अन्य विश्वविद्यालय हो या कोई भी संस्थान हो अनुशासन बगैर कुछ भी सही तरह से संचालित नही हो सकता। ऐसा करने के लिए सरकार को जिस स्तर के सख्ती की आवश्यकता हो बेझिझक लागू करना चाहिए क्योंकि ये सिर्फ एक संस्थान की बात नही है और नही उसमे पढ़ने वाले किसी बच्चे का वो स्थायी ठिकाना है ये भारत के भविष्य की बात है और उसका मजबूत आधार वहां तैयार होता है और उसकी बेहतरी आवश्यक न कि किसी व्यक्ति या विचारधारा की संतुष्टि ………….. खास तौर पर तब जब वो वर्ग अपने को देश ,समाज,संस्कृति,और आने वाली पीढ़ियों पर उसके कुप्रभाव से चिंतित हुए बगैर स्वतंत्रता और स्वक्षन्दता में अंतर स्थापित न कर पाता हो…बाकी किसी भी व्यवस्था में बेहतरी के लिए बदलाव और आंदोलन चलते रहने वाली चीज है,दोनों अपनी गति से चलती रहेगी।