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मानव जीवन सरल व सहज होना चाहिए: जीयर स्वामी

बक्सर:मानव जीवन के कल्याण के लिए सहज, सरल व सुगम होना चाहिए.यह बाते डेहरी प्रखंड के पतपुरा पंचायत स्थित ओझवलिया,भटौली गांव में चल रहे ज्ञान यज्ञ महामहोत्सव के पांचवें दिन पूज्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कही उन्होंने कहा मानव जीवन में जीने का कुछ साधन है.जिसमें तीसरा साधन है.शरीर को बाहर और भीतर से पवित्र करना .शरीर को पवित्र करने के लिए सुबह सुबह जग कर श्री हरि का तीन बार उच्चारण करना चाहिए.इसके बाद हाथों का दर्शन करते भावना चाहिए.कि हमारे हाथों में देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और गोविंद भगवान का निवास स्थान है.इसके बाद 14 भगवान के भक्तों के नाम लेना चाहिए.इससे मंगल की कामना होती है.वो भक्त है. प्रहलाद,नारद,पराशर,पुंडरिक,वयास,अंम्बरिश,

शुखदेवजी,शौनक,भीष्माचार्य,दालभ्याम,रुकमांगद,
अर्जुन,वशिषठ,विभीषण है.
जिसमें पहला भक्त पह्रलाद, दूसरा भक्त नारद, तीसरा भक्त है, पराशर-वो वेेेद विरोधियों को अपनेे युक्ति, सुक्ति, वाणी व लेखनी द्वारा,खंडन कर के भगवान के तत्वोंं को,भगवत तत्वों को, सत् मार्गों को, वेदों को स्थापना किये.समन्वय स्थापित करने का काम किये है.सबसे श्रेष्ठ पुराण विष्णु पुराण है.जो परासर ऋषि का है.बाकी 17 पुराण का रचना व्यास जी ने किया है.चौथा भक्त है पुंंडरिक-.वो गृहस्थ आश्रम में रहने वाले संत है.जो अपने माता पिता की सेवा कर भगवान को वस में कर लिये.स्वामी जी ने कहा कि माता पिता की सेवा करने से 35 कोटि देवता के पूूजा करने का फल प्राप्त होता है.माता पिता की सेेवा ईश्वर,संत की सेवा करना होता हैै.पांंचवा भक्त है.व्यास जी.इस दुनिया में नही होते.तो आज दुुनिया का जो ग्रंथ है.केवल वाच्य रुप में रह जाता, वाणी रुप में रह जाता,आज लेखनी के रुप में नही होता.आज लेखनी के रुप में संसार में स्थापित करनेवाले धर्म, कर्म, वेद,उपनिषद,पुराणों की कथा का योगदान है.उन्होंने जो मानवीय संस्कृति का संदेश दिया,उपदेश दिया,आदेश दिया.उसे हम भुल नही सकते.व्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत पुराण मानव जीवन का ह्रदय है.प्राण है. छठवां भक्त अंम्बरिश है.वो गृहस्थ आश्रम थे.लेकिन मर्यादा में रहते थे.एकादशी व्रत करते थे.एकादशी व्रत करने से भगवान प्रसन्न होते है.स्वामी जी ने कहा कि दशमी से युक्त एकादशी नही करना चाहिए.
जीयर स्वामी जी महाराज के प्रवचन में सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।